#लायक़
रिमझिम बूंदों की सफर में कुछ ऐसा हो जाए
लायक नहीं है हम फिर भी वो बचपन के वह
दिन मिल जाए..
आसमान में से छोटी बुंदे पानी की गरज के
साथ बरस रही है पहले बारिश की मिट्टी की
खुशबू वो मनुष्य पशु पंखी मोहित कर रही है
छोटे हाथों में कुछ बारिश की बूंदे पकड़ रहे थे
कहते हैं कागज की कश्ती का कोई किनारा नहीं होता बहती हे जहां पानी की धारा बहती है बस
हमारे हाथों मे वह कागज की कश्ती मिल जाए खोई हुई खुशियां ,मुस्कुराहट फिर से लौट आए ।
छोटी सी पाठशाला के दिन फिर से लौट आए
जहां गुरुजी अच्छी बात की शिक्षा देते थे और
कुछ वह दोस्त जिनके साथ में की शरारत और शिकायत का दौर आज अभी फिर से लौट आए
रिमझिम बूंदों की सफर में कुछ ऐसा हो जाए
लायक नहीं है हम फिर भी वो बचपन के वह
दिन मिल जाए..