प्रदूषण
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कोई बसन्त का आगमन नहीं होएगा
पर्यावरण प्रदूषित है, मानव रोयेगा।
आज, वो दिन लद गए है साब!
अब केवल कल्पना में खोएगा।।
करनी का फल तो मिलना ही है,
अब ज़िन्दगी को घमण्डता से खोएगा।
अब तो जीवन मे उजास कैसे हो,
बसन्त-बसन्त कह फूट-फूट कर रोएगा।।
अपनी कुल्हाड़ी अपने पैरों पर चले तो,
इंसान चैन की नींद कब सोएगा?
✍️सुरेश सौरभ✍️
रामपुर फुफुआव, ज़मानियाँ
गाज़ीपुर, उत्तर प्रदेश