# विषय .मानव तेरे रुप हजार "
# कविता ***
मानव तेरे ,रुप हजार ।
कभी पिता बन ,पालन करता ।।
कभी माता बन ,जन्म देता ।
कभी बहिन बन ,राखी के रिश्ते निभाता ।।
कभी डाक्टर बन ,मौत से बचाता ।
कभी वैज्ञानिक बन ,अजुबे दिखलाता ।।
कभी सैनिक बन ,देश बचाता ।
कभी आंतकी बन ,खुन बहाता ।।
कभी गुरु बन ,शिक्षा देता ।
कभी मानवतावादी बन ,परोपकार करता ।।
कभी हैवानियती बन ,आबरु लुटता ।
कभी ढ़ौगी बन ,भक्तों को लुटता ।।
कभी व्यापारी बन ,सेवा करता ।
कभी किसान बन ,पेट भरता ।।
मानव तू तो ,गजब का प्राणी ठहरा ।
तेरी लीलाओं को ,ईश्वर भी समझ नहीं पाता ।।
बृजमोहन रणा ,कश्यप ,कवि ,अमदाबाद ,गुजरात ।