#शुरुआत
हटा ये निराशा की चादर,
नया सवेरा लाया नयी शुरुआत ।
फिर क्यों लेटा गमों के बिस्तर पे,
अंधेरा घन्ना हुआ तो क्या?
सूरज का तेज पुकारे तुजको,
आसमान का सितारा बन जाने को ।
सुवर्ण,पीतल सम रंग होय रे,
जो अग्निपंथ से गुज़र के कंचन होय रे ,
Mahek parwani