चलते-चलते, भूखे-प्यासे,
गिरा, हुआ जब तक कर चूर,
सफ़र बहुत बाकी था अब भी,
मंजिल जाने कितनी दूर।

कुछ भी मिल जाता खाने को,
कोई पिला देता पानी,
तभी उतर आया गाड़ी से,
वह देवदूत परम ज्ञानी।

पर उसने कुछ दिया नहीं, बस,
चित्र लिया और चला गया,
पत्रकार वह बना बड़ा,
और मैं मूरख फिर छला गया।।

#Nerd / मूरख

Hindi Poem by Yasho Vardhan Ojha : 111455391
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