बचपन से हि मे लेट कमर, नहा -धोके रेडी होने मे हम लेट हि गये ओर सज़ा के तौर पे हमे आखिरी सिट पे बेठाया गया सुबह हमे नास्ता कराने एक वेज रेस्ट्रां मे लेके गये हमने भी पेट भर के ढोसा, इडली, वडा खाया
वहा पे एक चाचा साइकल पे दस रुपे मे गजरे बेच रहे थे, सभी को गजरा डाले देख मन तो हमारा भी था तो बस लगा लिए गजरे आखो मे कजरे..
हमे मिनी बस मे बंडीपुर से मधुमलै के रास्ते से उटी ले जाने वाले थे जिस्मे हमारा होस्ट कम गाइड था श्रीनिवास !
हम नब्बे के बच्चों ने मदारी लाइव तो नही देखा होगा लेकिन फ़िल्मो वगेरा मे देखा हो तो उन्की बात करने का एक खास तरीका हि होता है
गुलाटी मारेगा ,
मारेगा !
सलाम ठोकेगा,
ठोकेगा !
बस वेसा हि कुछ बात करने का तरीका था श्रीनिवास का
हम जंगल से होते हुए जायेन्गे, गाडि बिच मे कही नहि रुकेगा, आपका नसिब अचा हुआ तो कोइ जानवर दिकेगा, पोतु किचनेके वास्ते बि गाडी नै रुकेगा , अगर आप बोलेगे गाडि स्लो कर देगा पर रुकेगा नही ,कचरा बहार नै फ़ेकना, कोइ जानवर को देखके चिलाने का बि नै, ओर पुरे रास्ते मे कोइ जानवर ना दिके तो हमार जिमेदारी बि नै...
झू से ज़ादा अभयारन अछे लगते है मुजे हम उन्के इलाके मे जाते है उन्हे देखने लिए वो आज़ाद होते है,पिंजरे मे नही, अभी कोरोना के चलते हम सब केद है हमारी जरूरत कि सारी चिजे उपलब्ध है फ़िर भी हम केद है शायद इसे हि कर्मा केहते है जेसा करो वेसा भरो है इस जहा का नियम!
वैसे नसिब थोडे अच्छे हि थे हमे हिरन, शेर, हाथी, बेल, अजगर ओर भी काफ़ी कुछ दिखा जिसमे से हिरन कि विडिओ मेने शेर कि है बाकी कि विडिओ मे स्टोरी मे रख रहि हूं, जो हमेशा मेरी हाइलाइट्स मे सेव रहेगा...
हाथी मेरे साथी का शूटिग कहा हुआ था, चंदन कि तस्करी करता विरपन्न कहा से पकडा गया था, उसकी क्या कहानी थी सब कुछ हमे श्रीनिवास ने अपने अंदाज़ मे बताया, बिच मे पुरा बडा सा चंदन का जगल भी देखा, अब दुपहर हो चली थी ओर लगातार हेरपीन बेन्ड कि वजह से चक्कर भी आने लगे थे,
धिरे धिरे वातावरन मे निलगिरी कि खुशबू घूल रही थी मानो किसी नवेली दुल्हन ने मेहेन्दी लगाइ हो हम उटी पोहोच ने वाले थे...