बार-बार कह जाती हूँ मैं,
तुमसे कुछ अनजाने में
मेरे सपनों में कैसे तुम,
कौन झरोखे आ जाते हो
सांकल घर की बंद लगी है,
निकल किधर से तुम जाते हो
नयन ठहरो कुछ देर सही,
लो भोर हो गई अनजाने में
बार-बार कह जाती हूँ मैं,
तुमसे कुछ अनजाने में
तुम मेरे जीवन के मंदिर,
और प्रार्थना की सीढ़ी मैं
पल भर पहले थी मैं क्या,
क्या हुई मैं पल-भर बाद
मुझमें तुम ऐसे हो समाए,
सागर हुई बूँद अनजाने में
बार-बार कह जाती हूँ मैं,
तुमसे कुछ अनजाने में
# करुनेश कंचन