गजल
आपकी चेहरे पर जो जुल्फें गिरी हुई हैं
कसम से,मेरी जान जा रही है
हटा लो अपनी नशीली आखें मेरे चेहरे से
कमबख्त!बिन जाम के मुझे मदहोश कर रही है
मेरे मोहल्ले के लड़कें क्यों परवानें बने हुए हैं
उफ!आप जैसी शमां इस मोहल्ले में ठहरी हुई है
ऐ लम्हा जरा ठहर इतनी जल्दी भी क्या है
मैंने दीदार किया है उनका, अभी आँखें चार होना बाकी है
:कुमार किशन