Hindi Quote in Shayri by Lalit Raj

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चंद मुलाकातों में बात दोस्ती तक आ पहूंची थी, मुलाकातें अब रूख बदलने लगी थी, सायद इस घड़ी ही हमें उनसे महोब्बत होने लगी थी,बस इज़हार-ए-इश्क बाकी रह गया था।

दोस्ती की हद में हम अपना इश्क बयां करने लगे,फिर भी न जाने वो हमसे किस बात से खफा होने लगे,सायद उन्हें हमारे इश्क का फरमान पसंद नहीं आया,इसलिए वो अब हमारी गली से नजरें फेरकर गुजरने लगे।

हमारी नाराजगी उनसे फिर भी न थी,उनके न चाहने पर भी हम दोस्ती का हक अदा कियेजा रहे थे,मगर उन्हें हमारी मौजूदगी में कांटे से चुबने लगे,हमने उनकी समझी पर फासले इतने बढा लिऐ कि उनके बगैर तनहाइयों में अपना वक्त गुजारने लगे।

फिर एक दिन मुलाकात फिरसे हुई मगर वक्त को सायद यही मंजूर था के वो दुल्हन के लीवाज में डोली में थी और हम कफन ओड़े अर्थी पर थे।

कोई इश्क करें तो वो गुनाह नहीं इसलिए उसे तनहाई की सजा मत देना,चाहे हमसफर न बनसको मगर दोस्ती बनाऐ रखना, कोई बेवफा नहीं होता सायद मजबूर होकर ऐसे फैसले होजाया करते हैं मगर जिससे चाहत हो उसे खुद से हारने के लिऐ मजबूर भी मत करना।

" इश्क चाहकर कभी नहीं होता वो तो सिर्फ जरूरत है और अगर न चाहकर भी इश्क हो जाये वहां निशब्द ही इज़हारे-ए-इश्क होता है।"

#lalitraj #love

Hindi Shayri by Lalit Raj : 111443899
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