साहित्य और अनन्नास!
साहित्य और कला भी आपको ऐसे ही मिलते हैं जैसे कोई फल।
अब यदि आपके हाथ में अनन्नास है तो पहले इसका कांटेदार छिलका हटाइए और तब खाइए।
यदि आप लिखने वाले के जाति, धर्म, नस्ल, विचारधारा या उसके पुरुष अथवा महिला होने जैसे पूर्वाग्रहों में ही उलझ जाएंगे तो इस बात पर पहुंचेंगे ही नहीं, कि उसने क्या कहना चाहा है। क्योंकि ये बातें छिलके की तरह ही हैं।
तो छिलके हटा दीजिए ना!
याद रखिए, यदि आप चाहते हैं कि आपको केवल शुद्ध साहित्य या कला ही मिले, तो ये उस बाजारी कटे फलों की चाट जैसा ही है जो स्वादिष्ट तो हो सकता है पर स्वास्थ्य की दृष्टि से निरापद भी हो, ये ज़रूरी नहीं।
अर्थात इस शुद्धता में मिलावट छिपी है।