Hindi Quote in Book-Review by Saroj Verma

Book-Review quotes are very popular on BitesApp with millions of authors writing small inspirational quotes in Hindi daily and inspiring the readers, you can start writing today and fulfill your life of becoming the quotes writer or poem writer.

सत्य की जीत
(द्वारिका प्रसाद महेश्वरी)

"सत्य की जीत" खण्डकाव्य की कथा द्रोपदी के चीरहरण से सम्बन्धित है, ये कथानक महाभारत की द्यूतक्रीड़ा पर आधारित है, ये अत्यंत लघु काव्य है।।
        युधिष्ठिर द्यूतक्रीड़ा मे अपना सर्वस्व हारने के उपरांत द्रौपदी को भी हार जाते हैं, तब दुर्योधन, दुःशासन को आदेश देता है कि वो द्रौपदी को भरी सभा मे लाए,दुःशासन राजमहल से द्रौपदी के केश पकड़कर उसे खीचते हुए भरी सभा मे लाता है, तब द्रोपदी ये अपमान सहन नहीं कर पाती और चीखते हुए कहती है____

"ध्वंस विध्वंस प्रलय का दृश्य,
                  भयंकर भीषण हा-हाकार।
मचाने आयी हूँ रे आज,
               खोल दे राजमहल का द्वार।।"

द्रौपदी की गर्जना से पूरा महल हिल जाता है और सभा मे उपस्थित सभी मौन हो जाते है, इसके पश्चात् द्रौपदी कहती हैं कि धर्मराज युधिष्ठिर अपना सब हार चुके हैं किन्तु मैं कोई उनकी निजी सम्पत्ति तो नहीं हूँ, उन्हें दाँव पर मुझे लगाने का कोई अधिकार नहीं है,वह कहती हैं कि सभा मे उपस्थित सभी मेरे आदरणीय हैं वो ही निर्णय करें कि वे अधर्म एवं कपट की विजय को स्वीकार करते हैं या सत्य और धर्म की हार को स्वीकार करते हैं,जब कोई भी उसके प्रश्नों का उत्तर नहीं देता तब वो अपने सम्पूर्ण आत्मबल के साथ सत्य का सहारा लेकर उसे ललकारती है___

"और तुमने देखा ये स्वयं ,
                      कि होते जिधर सत्य और न्याय।
जीत होती उनकी ही सदा,
                  समय चाहे कितना लग जाए।।

"सत्य की जीत" मे द्वारिका प्रसाद माहेश्वरी जी ने द्रौपदी के परम्परागत चरित्र मे नवीनीकरण करके आज की नारी का मार्गदर्शन किया है, तात्पर्य हैं कि द्रोपदी के माध्यम से आधुनिक नारी का परिचय दिया है।
       दुःशासन द्वारा भरी सभा में अपमानित हुई द्रौपदी अबला सी बनकर आंसू नहीं बहाती,बल्कि आधुनिक नारी की भांति क्रोधित होकर सिंहनी की भांति गर्जना करते हुए कहती है____

अरे-ओ दुःशासन निर्लज्ज!
देख तू नारी का भी क्रोध।
किसे कहते उसका अपमान
कराऊँगी मैं इसका बोध।।

द्रौपदी दुःशासन को अपमानित करते हुए कहती हैं कि तू मेरे केश पकड़कर भरी सभा में खींच कर ले आया हैं किन्तु मैं रक्त के घूँट पीकर केवल इसलिए मौन हूँ क्योंकि तू नारी से मार खाकर संसार मे मुंह दिखाने योग्य नहीं रह जाएगा।।
      तू नारी की शक्ति को पहचान नहीं पाया है, नारी कोमल अवश्य होती है, परन्तु आवश्यकता पड़ने पर वो पापियों का संहार करने के लिए भैरवी का रूप भी ले सकती है, पुरुष की यह भूल है कि वो सारे संसार पर अपना अधिकार मानता है, नारी पर अकारण चोट करता है, जबकि नारी और पुरूष एक समान है_____

प्रकृति ने बतलाया कब पुरूष
बली है, नारी है बलहीन।
कहाँ अंकित उसमे रे पुरूष
श्रेष्ठ, नारी निकृष्ट, अति दीन।।

इस प्रकार द्रौपदी के द्वारा कवि ने यह सिद्ध किया कि मानवता के विकास में नारी और पुरूष दोनों का ही महत्व है, दोनों एकदूसरे के पूरक हैं, नारी को अबला एवं बलहीन समझना उचित नहीं है।।

पुरूष उस नारी की ही देन,
उसी के हाथों का निर्माण।

इति_
सरोज वर्मा__

Hindi Book-Review by Saroj Verma : 111434008
New bites

The best sellers write on Matrubharti, do you?

Start Writing Now