#पागल
ए जमाना कहेता है, में थोड़ा पागल हूं।।।।
नींद की गहराई को चीर , में अपनी आंखे खोलु
एक आजाद पंछी के जैसे उड़ने को बाहे खोलु
तो लोग कहेते है, थोड़ा पागल हूं .....
भरी सड़क और ए भागम-भाग लोग
में मस्त मौला , अपनी ही धुन में चलु
तो लोग कहेते है, थोड़ा पागल हूं ....
अल्फाबीटा की जंझट और उलझे मेरे क्लासमेट
में चालू लेक्चर ही, मैडम की तस्वीर बनाऊ
तो लोग कहेते है, थोड़ा पागल हूं .....
रिमझिम बारिश और रुकने का इंतज़ार करते लोग
में भीगने को तरसू, छात्ता खोले बिना ही चल पड़ू
तो लोग कहेते है, थोड़ा पागल हूं ....
टीवी सिनेमा की दुनिया और उसमे खोए भाई बहन
में डूबते सूरज की किरणे, ओझल होती देखू
तो लोग कहेते है, थोड़ा पागल हूं .......
आइने की दीवार और उसमे बैठा अजनबी
में आंखे फाड़ू,मुंह फुलाऊ, दात दिखाऊं
और अपने आप से ही बतियाऊ
तो लोग कहेते है, थोड़ा पागल हूं .......
नादान है ये लोग जो कहते है थोड़ा पागल हूं
में सच कहूं? में थोड़ा नहीं पूरा ही पागल हूं
और ये लोग कहते है कि में थोड़ा पागल हूं।