किया कोशिश बहुत उसने, थी किस्मत रूठी - रूठी सी
समझ आया नहीं उसको, थी केवल बात इतनी सी
ये दुनिया है कटुंब अपना, ये जन सागर भी है अपना
मैं सोचूं यदि भला सबका, इसी में है भला अपना
खुशी सच्ची वो होती है, जहां सब मुस्कुराते है
अभय रहते जहां हर जीव, पंछी गीत गाते हैं
सफलता भी कदम चूमे,
जहां नहीं द्वेष पलते हैं
जहां भूंखा नहीं सोता कोई, चूल्हे हर घर में जलते हैं
जहां पर "मैं" नहीं होता, जहां हम साथ होते हैं
कदाचित मन हुआ मैला, प्रीत जल दाग़ धोते हैं
जहां लहराए सागर प्यार का,
वहीं पर स्वर्ग होता है,
जहां निज भूलकर परहित में जीवन उत्सर्ग होता है
है बस ये बात इतनी सी, हो जीवन में सदा ही हर्ष
रहे मन साफ मनाएं जश्न, दूजे का हो जब उत्कर्ष