#बढ़ना
ये बढता हुआ लोकड़ाउन ,
ये कम होता हुआ धीरज।
ये बढती हुई अस्पताल,
ये कम होती हुई जनसंख्या।
ये बढ़ती हुई भूख,
ये कम होती हुई सब्जियां।
ये ऊँची उड़ान परिन्दों की,
ये डरी- सहमी सी नज़र इंसानो की।
ये बढ़ती हुई जुदाई,
ये कम होती हुई गिनती सांसो के।
ये बढ़ती हुई तन्हाई,
ये कम होती हुई भीड़।
ये अनदेखा-अनजाना सा नज़ारा,
ये खुशियों का खत्म होता हुआ पिटारा,
खुद को भगवान समझता इंसान,
लगाए गुहार फैला के दामन।
Mahek Parwani