#बढ़ना
#गर_बढ़ना_है
गर बढ़ना है तो फिर रुकना कैसा ।
मेरे इन कदमों का अब दुखना कैसा ।।
दम निकले मेरा या साँसें छूट जाएं ।
अब सरे राँह यूँ मेरा थकना कैसा ।।
हार के जीने में अब कैसा मजा है।
आँखों में आँशू तो हँसना कैसा ।।
पन्ना तुमको ग़म भुला के बढ़ना है ।
ख़ामोखं झंझावतों में फंसना कैसा ।।
-पन्ना