क्या पता था ऐसे दिन भी आएंगे...
जब ऊपर खुदा आसमां होगा और नीचे खुला मैदान, पास सब होंगे फिर भी किसी का इंतजार होगा।
भुला चुके वह दौड़ छोड़ चुके वह शोर, अब तो बच्चों की हंसी से होता भोर।
पहले अपनों से ही बस थे रिश्ते मीठे, आज तो उनसे भी है नाते जिनसे थे रूठे।
क्या पता था ऐसे दिन भी आएंगे.....
काम का सुरूर यूं चढ़ा था, घर कहां है क्या पता था। आज सुकून यूं मिला है, सोचता हूं यह दिन कहा था।
क्या पता था ऐसे दिन भी आएंगे....।