मेकअप आर्टिस्ट की स्वीकारोक्ति!
कहते हैं, इंसान दुनिया में आने के बाद खाता, सोता, घूमता, गाता, कमाता, लुटाता ही तो है फ़िर इस फानी दुनिया में कलेंडरों की अहमियत ही क्या? हम तारीखें क्यों देखें!
लेकिन लोग ये कैसे भूल सकते थे कि फ़िल्म "मेरे मेहबूब" से दुनिया को अपने हुस्न का जलवा दिखाने वाली हुस्ना की छवि ने पूरी आधी सदी पार कर ली थी।
लोगों ने वो लम्हे याद किए।
मनोज कुमार ने कहा- मैंने साधना को पहली बार खार से अंधेरी जाते हुए एक लोकल ट्रेन में खिड़की के सहारे बैठे हुए देखा था, उनके माथे की लटें हवा से उड़ रही थीं। मैंने मन में सोचा, ऐसी बेमिसाल ख़ूबसूरती को तो फ़िल्मों में होना चाहिए...चंद साल बीते कि वो हिंदी सिनेमा के शिखर पर थी।
विश्वजीत ने कहा - उसके चेहरे के क्लोज़-अप शहर भर की चर्चा के विषय बनते थे।
अरुणा ईरानी ने कहा- क्या सूरत थी, लोग तो पागल हो गए।
धीरज कुमार ने बताया- उसे सब चाहते थे, उसका जादू राजेश खन्ना से कम नहीं था।
डांस डायरेक्टर सरोज खान बोलीं- वो ? क्या इंसान थी बाबा! "झुमका गिरा रे बरेली के बाज़ार में" गाने की शूटिंग के बाद उसने मुझे लटकने वाले बेहद ख़ूबसूरत झुमके तोहफ़े में दिए।
अभिनेत्री सीमा देव ने कहा- कितना प्यारा चेहरा था, किसने नज़र लगा दी जो ऐसे मुखड़े पर थायरॉइड ने हमला कर दिया, ओह, बाद में वो लड़की कैमरे से डरने लगी!
पंडरी जुकर (साधना की मेकअप आर्टिस्ट) भी बोलीं- उन्हें मेकअप की ज़रूरत कहां थी? वो तो वैसे ही दमकती थीं।