दोस्ती की महक......
इस
फुर्सत के पलों में.....
जिंदगी के पन्ने
पलटते हुए......
यहाँ वहाँ
भटकते हुए.......
आ गया हूँ
दोस्तों की दुनिया में
अब जिन्दगी के
गिले-शिकवे गिनाऊ......
या
दोस्ती की महक
फैलाऊँ.....
बचपन से लेकर
आज तक
जाने कितने दोस्त मिले
कुछ सबकुछ
कर गुजरने वाले मिले....
कुछ संभल कर
चलने वाले मिले......
कुछ मुझ जैसे
नकारे मिले....
कुछ तुम जैसे
सहारे मिले......
अब एक-एक की
बात बताऊँ........
या
दोस्ती की महक
फैलाऊँ.....
कुछ ले गया नियति
जो मेरे खास थे
कुछ दूर हो गए इतने
जो बहुत पास थे
कुछ अच्छे
बहुत दिलदार मिले.....
कुछ ही
ज्यादा होशियार मिले.....
कुछ दोस्त
बहुत निराले हैं.....
कुछ सच में
दिलवाले हैं.....
अब एक-एक का
नाम बताऊँ.......
या
दोस्ती की महक
फैलाऊँ......