प्रेम
ऐसा प्रेम का बन्धन बाँधो।
अगणित हो सब बने एक हों,ऐसा सेतुबन्ध तुम बाँधो।
ऊँच नीच का भेद नहीं हों,
सबके दिल में प्रेम दया हो,
प्रेम को ही सब पूजा समझे,ऐसा ही तुम करके दिख ला दो।
हर मानव मानव को ढाये,
हर तिरिया तिरिया को रूलाये।
जग की काया बदल सके जो, ऐसा तुम करके दिख ला दो।
सब में सब गुण हीं देखे,
अवगुण को सब पीछें फेकें।
अपने अवगुण देख सके जो,ऐसा अर्न्तचक्षु जगा दो।
प्रेम का सुमन खिलाओ मन में,
सबका मान बढाओ मन में।
मानव मानवता को पूजे,ऐसी अनुपम पवन बहा दो।