शाम का सूरज हमेशा बुजुर्ग की तरह लगता है. बिलकुल थका हुआ सा, उनकी दिनभर की मेहनत उसकी रोशनी में छिपी होती है. शाम को वह रोशनी मुझे हमेशा बुजुर्ग व्यक्ति के चेहरे में पड़ जाने वाली झुर्रिया की तरह लगती है..जिनके साथ रहने पर लगता है यह जीवन हमें भी चाहिए. मैं बुजुर्ग से पूछता हूं आपका बचपन कैसे था? जवाब- सुबह की तरह था. जिसे हमने बड़ी खूबसूरती से जिया है. और आपकी जवानी? दोपहर में गुजर गई. आज का जीवन बहुत कठनाई से गुजरा. ऎसा क्यों? दोपहर में घने बादलों ने मुझे घेर लिया था. शायद यही मेरी जवानी का संघर्ष है. अब मैं बुजुर्ग हो चुका हूं मेरी रोशनी अंतिम तक पहुंच सकती है. मेरे इस एक दिन के जीवन में बहुत लोग साथ होते है जैसे हवा का चलना, चिड़िया का पश्चिम की ओर जाते हुए आवाज़ करना जिसमें लोग मुझे भी देख लेते है. उस देख लेने में पेड़ भी शामिल है. शाम को बादलों में छुप जाना उम्र से पहले जाना नहीं होता.🌸🙏
#गांव में अंतिम दिन.