शुभ संध्या वंदन शनिवार जय बजरंगबली हनुमान जय शनिदेव आरती हनुमान जी की एवं शनि देव जी की ब्रह्मदत्त त्यागी
[संध्या वंदन शनिवार जय बजरंगबली हनुमान जय बजरंगबली हनुमान ब्रह्मदत्त त्यागी हापुड़:]
सभी हनुमान भक्तों को जय श्री राम जय श्री राम शुभ संध्या वंदन शनिवार भगवान बजरंगबली जी हनुमान जी
आपको ब्रह्मदत्त त्यागी हापुड़ एवं सभी भक्तों का बारंबार प्रणाम नमन नमस्कार है आज शनिवार है शनिवार संध्या में आपका वंदन इस आरती के साथ ब्रह्मदत्त÷
÷÷श्री हनुमान की आरती÷÷
आरती का अर्थ है पूरी श्रद्धा के साथ परमात्मा की भक्ति में डूब जाना। भगवान को प्रसन्न करना। इसमें
परमात्मा में लीन होकर भक्त अपने देव की सारी बलाए स्वयं पर ले लेता है और भगवान को स्वतन्त्र होने का
अहसास कराता है।
आरती को नीराजन भी कहा जाता है। नीराजन का अर्थ है विशेष रूप से प्रकाशित करना। यानी कि देव पूजन
से प्राप्त होने वाली सकारात्मक शक्ति हमारे मन को प्रकाशित कर दें। व्यक्तित्व को उज्जवल कर दें। बिना मंत्र के किए गए पूजन में भी आरती कर लेने से पूर्णता आ जाती है। आरती पूरे घर को प्रकाशमान कर देती है,
जिससे कई नकारात्मक शक्तियां घर से दूर हो जाती हैं। जीवन में सुख-समृद्धि के द्वार खुलते हैं।
÷श्री हनुमानजी की संध्या काल आरती÷
आरति कीजै हनुमान लला की।
दुष्ट दलन रघुनाथ कला की।।
जाके बल से गिरिवर कांपै।
रोग-दोष जाके निकट न झांपै।।
अंजनी पुत्र महा बलदाई।
संतन के प्रेम सदा सहाई।।
दे बीरा रघुनाथ पठाये।
लंका जारि सिया सुधि लाये ।।
लंका सो कोट समुद्र सीखाई।
जात पवनसुत बार न लाई।।
लंका जारि असुर संहारे।
सिया रामजी के काज संवारे ।।
लक्ष्मण मूर्छित पड़े सकारे ।
आनि सजीवन प्रान उबारे ।।
पैठि पताल तोरि जम-कारे।
अहिरावन की भुजा उखारे ।।
बाईं भुजा असुर दल मारे।
दाहिने भुजा संत जन तारे ।।
सुर नर मुनि आरती उतारे।
जै जै जै हनुमान उचारे ।।
कंचन थार कपूर लौ छाई।
आरती करत अंजना माई।
जो हनुमान जी की आरती गावै।
बसि बैकुंठ परम पद पावै ।।
लंक विध्वंस किये रघुराई।
तुलसीदास स्वामी कीर्ति गाई।
आरति कीजै हनुमान लला की।
दुष्ट दलन रघुनाथ कला की।
+ब्रह्मदत्त त्यागी हापुड़-