क्या लिखूं आज जो आपको पसंद आए। रोज सोचती हूं कुछ तो लिखना है जो सबके साथ होता है। ऐसे ही लिखते लिखते कितना वक़्त चला गया पता ही भी चला। सही तो है वक़्त का ऐसा ही है पहले लगता था लोक डाउन में कैसे समय बीतेगा….मगर आज कितने दिन हो गए शायद एक महीना होने वाला है थोड़े समय में…फिर भी वक़्त बिता जा रहा है अपनो के साथ। ये दिन जो हम जिन्दगी में कभी नहीं भूल पाएंगे क्युकी, कभी नहीं सोचा था कि अपनो के साथ रहेते तो थे लेकिन कभी इतनी नजदिकया से जिया नहीं था। हमारी संस्कति जो पता तो थी मगर समझी नहीं थी वो भी थोड़ी थोड़ी समजमे आने लगी है। एक दूसरे कि अहमियत आज सबको पता चल गई। कोन कहेता है कि ये मुमकिन नहीं है… आज ये भी साबित कर दिया कि खुद चाहो तो कुछ भी नामुमकिन नहीं है। आप क्या सोचते है ? ये सही है ?