तेरी याद में जग लेता हूं
जैसे सुलाती थी अपनी गोद में तू वैसे ही तकिए को तेरी गोद समजकर सर रखलिया करता हूं
तेरी आंखोका नशा तो मुझे चढ़नेसे रहा पर शराब को तेरी आंखे समझ कर कभी कभी पी लिया करता हूं
जैसे तू मुझे अपने गलेसे लगाती थी वेसे ही कम्बल को तेरी बांहे समज़कर उसमे ही टूंट जाया करता हूं
तुभी तो मेरे बगेर जी रही है ना, मेभि ए सोचकर हररोज जी लिया करता हूं
वैसे तो में शायर नहिहु मगर तेरी यादों में कभी कभी शायरी करलिया करता हूं
तेरी यादों में हररोज जग लिया करता हूं
हमारी अधूरी कहानी...