तुम्हारी वो मुस्कान आज भी होठो पर हसी ले आती है।
आंखो में आज भी तेरी खामोशी नजर आती है।
बातो में मेरी तू रेहता है और ख्वाबों में मिल जाता है।
सोचूं में तुझ को जब भी तू लब्ज बनकर पन्ने पे बिखर जाता है।
मेरा ना होकर भी तू मुझको अपना सा कर जाता है।
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