My Positivity Poem ...!!!!
यारों जाने किस तरह से यहाँ “छूते” हैं
लोग के बस छूते ही बीमार हुए जाते हैं
यारों हमें भी तो”छुआ"था किसी ने उस
एक रोज़ तो बस इश्क-सा कुछ हुआ था
दिल की गहराइयों को वह छुअन छु तो
गई थी तड़प जिसकी आज भी जवाँ है
इश्क़-ए-मिज़ाजी नहीं वह छूअन तो थी
इश्क़-ए-हक़ीक़ी जो शायरी में बयाँ है
*कहने को ग़ालिब ख़्याल अच्छा तो है
पर मौत की सिद्धत तो बितती जिस पे
जाने तो बस वही जाने कि ये छुअन है
कैसी नागिन-सी डँसीली लेती जान है
बच के न रहना इससे मौत का पैग़ाम हैं
चंद रोज़ में ज़ालिम करती काम तमाम है
कातिल छुअन का डँसा माँगे ना पानी है
साँस तक को भी नही देती ये मोहलत हैं
ना ही कोई इस पर एतराज़ न जवाब है
यारों घर पर रहना ही अक्सीर इलाज है
प्रभु की तरफ़ से क़हर इसे कह लो या
बशर के शब़र की आज़माईंश, झेलना हैं
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