कविता ..
जो अपने दिल में डरा डरा सा है ।
वो जिंदा होकर भी मरा मरा सा है ।।
जेब उसकी खाली जरुर है ।
उसका दिखावा खरा खरा सा है ।।
जो कभी ईश्वर से नहीं डरता है ।
पर अपनी करनी से डरा डरा सा है ।।
उसको सारे गुनाह याद है ।
कोई तीर दिल में अभी गडा गडा सा है ।।
वो सदा दुसरों को आँखें दिखाता है ।
वह खुद अपनी नजर में गिरा गिरा सा है ।।
वह कोई बात खुशी से नहीं करता है ।
उसके दिल में कोई जख्म हरा हरा सा है ।।
बृजमोहन रणा ,कश्यप ,अमदाबाद ,गुजरात ।