"शतक पार आन्दोलन"
इतने बड़े बुहान के अलावा
वह विश्व की सभ्यता को छुआ था
मानव जाति को अपनी तिरस्कृत
और घृणा की नजरों से देखा है
जो चीज जहाँ थी वही ठहरने लगी है
सुबह के सूरज निकलने के पहले से
सभी जन अपनी चौखट के
भीतर चुपचाप सहम गए
टी बी की स्क्रीन सरक रही थी
सब दुबक कर उसी के सामने बैठे थे
मै सुन भी रहा था देख भी रहा था
दिल्ली के शाहीनबाग़ में
सौ दिन से चल रहे सीएए
कानून के खिलाफ आन्दोलन
जिसका नेतृत्व महिलाएं कर रही थीं
सुबह तम्बू उखाड़े जा रहे थे
सबको वहां से भगाया जा रहा था
कोरोना से सबको बचाने की
भारी जद्दोजहद की जा रही थी
आन्दोलन शतक पार किया था!
किताब-"भारत बंदी के वो इक्कीस दिन" संग्रह
लेखक-शिव भरोस तिवारी 'हमदर्द"