मेरी अमीरी का महल
खुला आसमान है छत भी नहीं है,
खुली जमीन है फर्श भी नहीं है।
खुली आवाजें है दस्तक भी नहीं है,
खुला दरवाजा है बंद भी नहीं है।
लगे सितारे हैं दिये भी नहीं है,
लगे धूप है सलील भी नहीं है।
लगे फूल है धूल भी नहीं है,
लगे महल है घर भी नहीं है।
एक शहज़ादी है परी भी नहीं है,
एक आंगन है दामन भी नहीं है ।
एक भूख है खाना भी नहीं है ,
एक अनपढ़ है कलम भी नहीं है।
बस यही मेरी अमीरी का महल है।
-अनपढ़ (दया साकरीया)