चार क़दम का है जिंदगी का सफर ,
हमसफर की कदर करता है ये सफर l
छुटपन मे मां-बाप चले हर क़दम ,
कंधे पर बैठा बने हमारे हमसफर ।
जो प्यार उन्होंने छलका ,
वो आज भी हर दिल में बसता ।
आज भी ज़हन में उन्हें रब बना कर बैठा ।
यौवन जब छलका , जिंदगी का रुख बदला ,
सात फेरे ले , जिंदगी का हमसफर बदला ।
रहबर बन मेरा , किया दर्द मेरा हल्का ,
दिल के हर कोने से प्यार उसी पे बरसा ।
तीसरा जो बढ़ाया कदम ,बने मां-बाप हम ।
कितनी रातें जाग के गुजारी ,कहता थे उन्हें लख्ते जिगर ।
हर मोड़ पर उनका साथ देना था , ये जिंदगी का अर्ज था ,
जो साथ इनका ना निभाया , तो जिंदगी का कर्ज देना था ।
चौथा क़दम , अपनी मौत के साथ संगम ,
चार कंधो के चले, जिंदगी को अलविदा हमदम ।
चार क़दम का जिंदगी का सफर ,
किया चार कंधों पर चढ़के खत्म l