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ढेर सारे अरमान उस दिन मैने फिर से सजाए थे,
जिस दिन हम उन्हें मिल कर घरको आए थे ।
बहुत ही खुशी थी - बहुत ही महक थी,
जिस तरह से हम उन्हें महेंका के आए थे।
बयाँ ना की जाए हयाँ उस वक़्त की,
कैसे बताए की... खाली हाथ लेकर -
फिर से लौटकर घरको हम आए थे।
सोचा "खुशी मिली थोड़ी सी" फिर भी,
थोड़ी सी खुशी में हम अपना जहाँ
सजा के जो आए थे।
अरमान हमारे थे बहुत से,
वोही अरमानो को दोहराने आए थे।
भूल कर सारे गीले और शीकवे,
फिर से वोही अरमान सजाने को हम आए थे।
....ढेर सारे अरमान सजाने को आए थे।
- संकेत व्यास (ईशारा)