तात्विक विचार धारा...
इस चराचर प्राणियों का रस पृथ्वी हैं।(अर्थात् उत्पति,स्थिति, लय का स्थान) पृथ्वी रस यानि आश्रय स्थान ।पृथ्वी का रस जल हैं। क्योंकि पृथ्वी जलमें ओतप्रोत हैं। जल का रस औषधियाँ हैं। औषधियों का रस पुरुष हैं। कयोंकि पुरुषों (मनुष्य) अन्न का ही परिणाम है। पुरुष का रस वाक् हैं। पुरुष के अवयवों मे वाक् का महत्व है इसलिए। वाक् का रस ऋक् यानि वेदों की ऋचाएंँ हैं।ऋक् का रस सामगान हैं।साम का रस उद्गीथ यानि ऊँकार हैं। क्योंकि ऊँकार ही सारभूत तत्व है।"गीता"