My New Poem...!!!!
आज देखनेवालो की नज़र क्या बदली ⛅️
सोचने का नज़रिया तक भी बदल गया
हस्ती की कश्ती तो वही है पुरानी मगर
मौजें बदली तुफां-ओ-दरिया बदल गया
इन्सानियत की तलाश का हर भ्रम भी तो
बदला,आमदनी का जरिया भी बदल गया
न जिस्म न “रुँह” न शकल बदली न ही
बदला इन्सानी वजूद का वह किरदार
बदला है गर कुछ तो बस लोगों के देखने का
फ़ितरत-ओ-अँदाज-ओ-शोज़ बदल गया
इस नाज़ुक-से दौर के बदलते वक़्त की
लकीरों से ख़्वाब-ओ-ख़्याल बदल गया
बे-हयाई-सी दिखावेकी पश्चिमी तहज़ीबसे
जीने का तरबियत-ओ-फ़न बदल-सा गया
नमस्कार सलाम ससरीया काल आदाबों से
बेवजह-सा Hi, Halo, Sorry बदल गया
पिसतीं चली संस्कृति ख़ानदानी पहनावे की
भगदड़ में मर्यादाका दामन छोटा होता गया
गिरती चली दिवार आज पड़ोसी-धर्म की
भाईचारेका खंडन सोचकी दिशा बदल गया
आत्मीयता ग्लानि परस्पर प्रेम-भाव आदर
सत्कार बड़ों का सम्मान तक गिरता गया..
ख़ुदगर्ज़ी की आँधियों में पुरखों का रुतबा
कुटुम्बका मर्तबा अपनोंका दुलार बिक गया
प्रभुजी ही निगहें-बान आनेवाली नस्लों का
फ़ुल-सी बच्चीयोँका आधारस्तंभ छीन गया
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