यादों के मौसम के ईस तूफान में...
कुछ धूँधला सा, कहीं कुछ खो़ सा गया है
कि जिंदगी का काँरवां भी रूक सा गया है।
अब बेबाक सी ये तनहाई है,
कि चैन- सूकुन भी अब लूट सा गया है।
सफ़र ये सुहाना था कभी तो,
कि अब तनहा दिल भी थक सा गया है।
कचोटती है कभी जो यादें तेरी,
कि मरहम हँसी का भी अब सूख सा गया है।
पन्ने उन किताबों के पलटते नहीं अब,
कि तेरी खुशबू का इत्र ऊसमें भी बिखर सा गया है।
तेरी यादोँ के गलियारों में जाना नहीं अब,
कि फिर से मन का यह पंछी भी मचल सा गया है।
आशका शुकल "टीनी"