मैं आज अकेला हूं
ये ना समझना की मैं हार गया
जो ये समझेगा वो पछताएगा
और मुंह की खाएंगे
डरा मत मुझे
भगा मत मुझे
झुका न सकेगा
मुझे मिटा न सकेगा
डर ही हैं ना मेरा
क्या बिगाड़ लेगा मेरा ?
उजड़ा हुआ शहर ज़रूर हूं
पर जीत से नहीं दूर
तेरी हार में
मेरा मज़ा है
यही तेरी सज़ा है
ये तो ऊपर वाले की रज़ा है ।
:- Ankit Singh