उम्र की सरहदों के पार पहुँचा दो मुझे
फिर से पाक बचपन लौटा दो मुझे
यादों के भरे समन्दर डुबोते हैं रोज ही
उनसे निकलने की कला सिखा दो मुझे
उम्र की......
गुजर गया जन्नत हर लम्हां था जहाँ
खिला हुआ गुलशन हर चेहरा था वहाँ
चहकती हुई टोली में कोई न अकेला था
ढूँढ़ कर उस खुशबू से महका दो मुझे
उम्र की......
छाया अग्रवाल
उम्र की सरहदों के पार पहुँचा दो मुझे
फिर से पाक बचपन लौटा दो मुझे
यादों के भरे समन्दर डुबोते हैं रोज ही
उनसे निकलने की कला सिखा दो मुझे
उम्र की......
गुजर गया जन्नत हर लम्हां था जहाँ
खिला हुआ गुलशन हर चेहरा था वहाँ
चहकती हुई टोली में कोई न अकेला था
ढूँढ़ कर उस खुशबू से महका दो मुझे
उम्र की......
छाया अग्रवाल