पंगा
एक वाक्य में कहा जाए तो "पंगा" बिलकुल सीधी सरल, बिना लटके-झटके, संगीत-नृत्य और बिना किसी स्पेशल इफेक्ट्स की मूवी है, जिसकी एक सशक्त काल्पनिक कहानी है। पहले हृषिकेश मुखर्जी, बासु भट्टाचार्य इत्यादि ऐसा कथा-संसार रचते थे, मुझे कुछ उसी श्रेणी की ये समझ आयी।
फिल्म में कोई रहस्य - रोमांच भी नहीं है, अंत predictable है। आप सोच रहे होंगे कि मैं मूवी की धज्जियाँ उड़ा रहीं हूँ, तो आप गलत है। फिल्म अपने मकसद "मनोरंजन" की कसौटी पर बिलकुल खरी है। एक क्षण बोझिल नहीं महसूस हुई। पात्र कम हैं पर सभी ने सधी हुई अदाकारी की है। संवाद दिल को छूते हैं।
मैं व्यक्तिगत तौर पर कंगना रनौत की फैन हूँ, इसमें भी उसने अपने सहज अभिनय से मन को मोह लिया। ऋचा चड्डा तो कई बार मुख्य पात्र पर भारी पड़ती दिखी। संदेश जबरदस्त है। कहानी बिलकुल वही है जो आप ट्रेलर में देख रहें हैं। भले ये अन्य स्पोर्ट्स मूवी दंगल, मैरी कॉम, भाग मिल्खा भाग जैसी जीवनी पर आधारित नहीं है पर कबड्डी के प्रति रूचि जगाने में अवश्य सफल है।
हर उस औरत के दिल को छू जाएगी ये कहानी जो अचानक जिंदगी में खुद के हाथ में बेलन देखने लगती है। ये फिल्म उन महिलाओं और खास तौर से उन मां को जरूर देखनी चाहिए जो अपने सपनों को पीछे छोड़ चुकी हैं। फिल्म के अंत में यही संदेश स्क्रीन पर लिखा दिखता है. पंगा हर उस महिला की कहानी है जो भले की आम हो, गुमनाम हो मगर उसे खुद को खास समझने का जज्बा नहीं छोड़ना चाहिए। अगर जिंदगी मौका दे तो एक बार पंगा जरूर लेना चाहिए।
ये पंगा मैंने भी लिया है जिंदगी में ......