हरी नीली पीली गुलाबी पतंगें
न जाने मगर कौन सी अब कहाँ है?
किसी-किसी के रंग, लगते सजीले
किसी-किसी के अंग,होते नशीले
किसी-किसी के तंग, थे ढीले-ढीले
तरसाती थीं दूर से भी पतंगें !
इन्हें देखते छत पे आते थे लड़के
गली में मिलीं, लूट लाते थे लड़के
पकड़ डोर जबभी, हिलाते थे लड़के
धरा से गगन पे, जातीं पतंगें !