इश्क़ वो नही जो सूरत पे ही सुम्मेर हो,
वजह न हो फिर भी वेबजह हो ,
बस समजो मतलब उसका ,
हर पल हो खोया हुवा हो उसमे
वो इश्क़ ही वो हो , वो जो जिंदा हो ।
उसके न हो ने ओर होने से न हो,
फ़क़ीर की तरह उसके ही नशे हो,
गर उसको न भी हो तो भी चलता हो ,
एक दिया जो हर पल जला रहता हो ,
वो इश्क़ ही वो हो ,वो जो जिंदा हो ।
मग़रूर हो कर के भी घुरूर न हो ,
तुज को मुज को हम सबको जो चुभता न हो ,
दिखता हो पर कभी "हृदय "जिसका बिकता न हो ,
वो इश्क़ ही वो हो ,वो जो जिंदा हो ।