दोहे
1 चूल्हा
चूल्हा कहता अग्नि से, जनम-जनम का साथ ।
कितने युग बदले सनम, छूटा कभी ना हाथ।।
अम्मा का चूल्हा बुझा, मिली धुआँ से मुक्ति।
अब पीढ़ी आराम से, करती चूल्हा भक्ति ।।
चूल्हा ने जग से कहा,बदले हमने रूप।
जंगल में मंगल रहे, सभी ढले अनुरूप।।
गाँवों में अब उज्जवला, ने फैलाये पैर।
हरियाली मुस्कायेगी, नहीं प्रकृति से बैर।।
जीव-जन्तु सब खुश हुये, सबने जोड़े हाथ।
अपना जीवन धन्य है, अब मानव का साथ।।
2 मजदूरी
मजदूरी मिलती नहीं, मानव खड़ा उदास।
घर की चिंता है उसे, काम नहीं कुछ पास ।।
मजदूरी से देश की, होती है पहचान।
आर्थिक उन्नति की यही, कहलाती सोपान।।
मजदूरी मजदूर की,जीवन का परिवार।
रहन-सहन जीवन-मरण,सबका मूलाधार।।
मजदूरों का हो भला, मिलजुल करें प्रयास।
जीवन में निर्भय रहें, करते यही विकास।।
3 अस्मिता
नारी की अब अस्मिता, लुटे सरे बाजार ।
अपराधी बेख़ौफ हैं, जागे अब सरकार।।
4 संवेदना
मानव की संवेदना, डूब मरी है आज।
मानवता रोती रहे, नहीं किसी को लाज ।।
5 ललकार
पाक रहा नापाक ही, बढ़ा रहा तकरार ।
सीमा पर सैनिक उसे,देते हैं ललकार।।
मनोज कुमार शुक्ल " मनोज "