My New Poem...!!!
वो एक लम्हा जब हम खुद,
खुद के खिलाफ होते हैं !
सौ बार लिखा तुम्हारे खिलाफ,
फिर सौ बार मिटाया हमने !
दिल तो दिल...लफ्ज़ भी तुम्हारे
खिलाफ जाना नहीं चाहते !!
दिल और दिमाग़ की खींचा-तानी
किसी एक बात पर हर मोड़ पर..
हर बंदे हर इन्सान की जीदगीं के हर
मोड़ पर हर पड़ाव पर होतीं आई हैं..!!
बहकते गिरते पड़ते उठते फिर गिरते
फिर पड़ते खाँ के ठोकर सँभलते रहते..!!
पर प्रभु ढाँचे मिट्टी के बना के जिस मक़सद
से हमें जहाँ में भेजें है उससे बेख़बर रहते हैं।
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