My New Poem ...!!!!
ठिठुर रहा है बदन साँस थम सी गई है,
काँप रहा है लहजा स्वर रुक सी गई है
लरज रही है धड़कन लहू ठर सी गई है
दूर चौ-राहेपे अध-खुले जिस्मको ताप
वह ग़रीब परिवार भी ठिठुर सी गई है
गलीके नुक्कड़पे कुत्ती भी मर सी गई है
माले-तुजार बस्ती घर क़ैद सी हो गई है
बहकी-सी जवानी मयमें खो सी गई है
इस सर्द रातमें शायरी भी जम सी गई है