अब जिक्र किसका क्या ? अब फिक्र भी ही नही कोई ,
रूठ कर मन को दबाना क्या ? अब मन ही नही कोई ।
बड़ी चाहत रखी थी हमने ; तलवार पर अपनी गर्दन रखी थी ,
अब बात बात पर हमारे सामने ,हमको याद करेगा कोई।
तरसा भी बहॉत ; अब तरस ही खत्म हो गई तृप्ति की ,
तड़प उनकी है अब ! हमारी चाहत के लिए तरसता है कोई ।
उसूल है हमारा या फिर आसान शा सलीक़ा ही कह दो,
हम पे जो गुजरी गुजर गई ,भर महेफिल में रो रा हैं कोई।
बांटने चलते हम गम ओर खुशियां ;तब ना पसंद थे हम,
दर्द उठा और फिर उठा अब "हृदय" के लिए चीख रा है कोई ।