My New Poem ...!!!
कहाँ थे पहले इतने सर्द-मर्ज़ यारों..!!
न बनावट न मिलावट न ख़ूँन-ख़राबी
न दाक़तर न अस्पताल न ख़ुराफ़ाती
मोहब्बत अख़लाक़ सगा था पड़ोसी
मान-मर्यादा था हुस्न-ए-भाईचारगी
दौलतों से थे रंक पर दिल से अमीरी
थी न क़ौम-क़ौम के बीच हैवानियती
बढ़ती गई जैसे-जैसे रिश्तोंकी दूरियाँ
बढ़ती गई वैसे-वैसे दरारें भी दरमियाँ
फैला दी बीमारी ने भी हदें बे-ईमँतेहा
नादान इन्सान भी दिखावेके बड़े घरों में
होता चला छोटा किरदार-औ-दिल से
शर्म-औ-हया है ख़्वाब आँजके दौर में
थे कभी व्यवहार में दिनचर्या में दिल में
बचें कुछ अब तो बस प्रभुजी तस्वीर में
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