My New Poem...!!!
प्रतिमा में भगवान हो न हो..
लेकिन ममता की प्रतिक
प्रति "मां" में स्वयं भगवान
बिराजमान जरूर होते हैं
आज का नादाँ इन्सान उसी
”माँ” को हल़के में ले कर
बदसुलुकी कर झिड़क देता
नराधम कुछ एसे भी होते है
अककल के अँधे आशिँवाद
की दोलत को दुनयवी दोलत
से कम़तरीन समझ उन्हें तौल
मौल मिलकत बटोर सेवा करने
के बजाय वृद्घाश्रम में छोड़ देते है
जिस्मसे “रुँह”का नाता तोड़ देते है
पर वक़्त करवट बदल पलटवार जब
करता तो बेटे से अपने वै पिट लेते है।
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