My New Poem ....!!!!
ये जबरन भी देखा तारीख़ की नज़रों ने
ख़ता की लम्हों ने सदियों ने सज़ा पाई
बना है जहाँ जब से उजड़े है जीव तब से
एक राजा की ललकार पर मिटते कहीं
धरतीं के चंद टुकड़ों की ख़ातिर दिए है
बलिदान भी लाखों सैकड़ों अरबों खर्बों
ख़ून-रेंजी का सिलसिला चला है बरसों
प्यास फ़िर-भी कहाँ मिटी है तारीख़ की
क़िस्मत आज़मातीं आई है इनसानियत
हेरानीं फ़िराक़ में लगी रहती बद-नियत
हज़ारों साल लगें पानेको एक तरबियत
एसे ही तो किरदार नहीं सँवर जाती है
फ़नाकी मंज़िल से पहेले वक़ार पाना है
“रुँह” में बसे प्रभु को परख कर जाना है।
✍️🌲🌸🌴🙏🙏🌴🌸🌲✍️