My New Poem...!!!
*कल नाज़ुक-सा शीशा था,
सब देख-देख कर सजते थे।*
*आज गलती से टूट गया,
सब बच-बच कर नीकल लेते हैं।*
*समय के साथ बदल जाता है।*
*देखने और इस्तेमाल का नजरिया ।*
*कल मासूम बच्चा था रो रो के,
माँ के आँचल से भी पेट भर लेता था।*
*आज जवानी का नशा छाया है
उसी माँको वृद्धाश्रम छोड़ आया है ।*
* वक़्त ही शहंशाह रहा हर दौर में
ढाँचे तो मिट्टी के बर्तन तूट़ते रहे है।*
*कब किसे कहाँ कैसे पहुँचाना हैं ये तो
नीली छतवाला कुंभार ही सिफँ जाने है
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