हमे पता चल गया की सुरज क्यों ढल गया?
चांद सा एक हसीन चहेरा सिर्फ हमे ही क्यो छल गया?
खिल जाते अगर हर उंचे पेडोंपे जो गुलशन,
तो इन कांटो के बिच खिले गुलाब का क्या होता?
पी ना लेते अगर हम गम का ये समंदर,
तो ये हसिन लहरें और किनारो का क्या होता?
तूटे तारों से अगर मिल जाती हर किसीको मंजिल,
तो आंखो से देखा हर सपना सपना क्या होता?
‘मशहूर’ दिल को मुहोब्बत करते है, चहेरे से नहि,
कल चहेरा हि ढल जायेगा तो तुम्हारे दिल का क्या होगा?
- हितेश डाभी 'मशहूर'