*शादीशुदा पुरुष की* *वेदना:-*
ब्याऔ नहीं करने थो, कर गये।
नाहक में, आफत में पर गये।।
बनीं बेड़ियाँ सात भाँवरें,
सपने पके बेर से झर गये।।
जान मान आफत लाबे खाँ,
दूल्हा बनकेँ उनके घर गये।
गऊ कह केँ दै दई शेरनी,
ससुर असुर बन हमें अखर गये।।
ऐसें खर्चा करत भवानीं,
जैसें बाप कमा कें धर गये।
क्रीम पाउडर में गये रुपैया,
घर के सब हालात बिगड गये।।
मजा मौज सब भूल गये हैं,
ऐंसौ लगत जेल में धर गये।
दद्दा हाल देख केँ बोले,
"काये"बेटा ठीक सुधर गये।।
☺☺.
एक अज्ञात बुन्देल खंडी रचनाकार