रचना
तेरी उसे जरूरत थी तब क्यो गम से लवरेज किया
| जिसकी सेवा करनी थी उसको वृद्धाश्रम भेज दिया|
जिसकी नजरौँ मेँ जहान से तू ही सबसे प्यारा था|
हँसते 2 तेरा मैला धोना जिसे गवारा था|
जाने कितने और क्या 2 वो तेरे नाज उठाती थी|
तुझे सुलाती सूखे मेँ खुद गीले मेँ सो जाती थी|
जिसकी कोख ने जन्म दिया है तुझको रोज सम्हाला है|
जिन हाथोँ ने तुझे उठाया जिस गोदी ने पाला है |
घर की दौलत थी वो माँ क्यौँ उसको नही सहेज लिया|
जिसकी सेवा करनी थी उसको वृद्धाश्रम भेज दिया|
वृद्धाश्रम में रह कर भी वो तुझे भला कहती हैं।
मुस्करा कर भी अपनी सारी तकलीफें सहती है।।
अपनी बहू सुशील और गुणवान बताती है वो।
खुद को बुरा बताती खुद पर दोष लगाती है वो।।
पोता पोती को को वो दिल से याद किया करती है।
कष्ट उठाकर भी वो तुझको दुआ दिया करती है।।
तेरी ना बदनामी हो वो इसीलिए डरती है।
अपनी पलकों में वो आंसू छुपा लिया करती है।।
रावत की नजरों में तूने कृत्य सनसनी खेज किया।
जिसकी सेवा करनी थी, उसको वृद्धाश्रम भेज दिया।।
रचनाकार
भरतसिह रावत भोपाल|
7999473420
9993685955