बाँध दिया मैंने जब
शब्दों को सीमाओं में
लगा जैसे कि
कई बाँध मैंने अपनी जिन्दगी पर लगा दिये
कई नदियों का पानी मैंने
अपनी आँखों में रोक लिया
कितने अहसासों का गरल मैंने
शिव की तरह पी लिया
और जीती चली गयी
फिर मैं
वो पूरी जिन्दगी बिना कोई तेज आवाज़ किये ..
बिना निरस्त किये जिन्दगी के साथ किया गया
औपचारिक अनुबंध